लोग बहुत मज़े लेते हैं इस बात के कि डेली पैसेंजर स्लीपर में यात्रा करते हैं। हंसते भी हैं गरियाते भी हैं, बात तो सही भी है गलती जो करे उसे सजा मिलनी चाहिए। मगर क्या गलती सिर्फ इन लोकल यात्रियों की है? आरा से मोकामा रुट पर दैनिक यात्रियों की सँख्या ज्यादा है। पैसेंजर ट्रेनों की हालत छुपी तो नही है। आरा से पटना अगर कोई बंदा किसी आफिस या कोचिंग क्लास या जो भी हो पकड़ने जाता है तो 50 किमी की दूरी में उसे 3 घण्टे भी लग सकते हैं। सुबह की शटल को छोड़ दिया जाए जो इस रूट की कम्यूटर ट्रेन है उसके अलावा क्या विकल्प बचता है। कई लोकल ट्रेन की ऐसी टाइमिंग बनाई गई है कि आरा से निकलती है दानापुर या फुलवारी तक ठीक चलती है फिर उसे दानापुर या फुलवारी में कोने वाली प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा कर दिया जाता है। जो...
more... लोग हंसते है या इस परिस्थिति पर गरियाते हैं उन्हें कम से कम यह सोचना भी होगा कि इस परिस्थिति को सुधारना है तो तीसरी लाइन बने या पटना के आसपास के क्षेत्र उपनगरीय सेवा घोषित हो। भारतीय रेल अभी तक पब्लिक कैरियर है सिर्फ बुलेट ट्रेन और राजधानी से इंडिया चल सकता है भारत नहीं।