कहीं रहम तो कहीं सितम
यात्री ट्रेनों के स्टापेज पर भ्रमित कर रही रेलवे की नीति
नागपुर, नगर प्रतिनिधि. कोविड काल में लगे देशव्यापी लॉकडाउन ने रेलवे को यात्री परिवहन व्यवस्था में भारी...
more... बदलाव का सुनहरा मौका दे दिया. सामाजिक सेवा बन चुके यात्री परिवहन को रेलवे ने पूरी तरह से कॉर्पोरेट कल्चर में ढालते हुए कई ट्रेनें हमेशा के लिए बंद कर दीं और कई स्टेशनों के स्टापेज ट्रेनों के रेल रूटों के नक्शे से ही हटा दिए गए. मध्य रेल और दक्षिण-पूर्व मध्य रेल जोन के तहत नागपुर मंडल में भी ऐसा किया गया. हजारों यात्रियों की परेशानी पहले से दोगुनी हो गई. कुछ दिनों बाद कुछ स्टापेज पुनः बहाल किए गए लेकिन कई स्टेशन अब भी बेहाल हैं. उधर, स्टापेज को पुनः बहाल करने के लिए रेलवे द्वारा अपनाई जा रही नीति भ्रमित कर रही है.
26 प्रश बढ़ा दी स्टापेज कॉस्ट : उल्लेखनीय है कि रेलवे बोर्ड द्वारा जारी नये दिशानिर्देशों के अनुसार, ट्रेनों के एक स्टापेज का खर्च 24 से 26 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है. आदेश के अनुसार, एक स्टापेज पर लगने वाली 4,376 से 5,396 रुपये लागत को अब सीधे बढ़ाकर 16,672 से 22,442 रुपये माना जायेगा. यानि पहले एक स्टापेज की लागत 4,376 रुपये मानी जाती थी जिसे सीधे 16,672 रुपये कर दिया गया. इसी आधार पर नये स्टापेज जोड़े जाने के निर्देश हैं. हाल ही में रेलवे बोर्ड के निर्देश पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस को नरखेड़ और जयपुर एक्सप्रेस को काटोल स्टेशन में स्टापेज दिया गया. इसके उलट, पांढुरना स्टेशन को किनारे कर दिया जबकि नरखेड़ और काटोल से ज्यादा बुकिंग पांढुरना से दर्ज की जाती रही है. ऐसा ही नजारा मुंबई रूट पर वर्धा, हिंगनघाट तो हावड़ा रूट पर तुमसर जैसे स्टेशन को लेकर है. सवाल यह है कि क्या नरखेड़ और काटोल स्टेशन स्टापेज की लागत संबंधी शर्त को पूरी करते हैं ?
रुपये कर दी गई अब एक स्टापेज की लागत
नागपुर मंडल में हुई डीआरयूसीसी की बैठक में समिति सदस्यों द्वारा कई जरूरी स्टापेज को दोबारा शुरू करने के विषय पर जमकर विरोध किया था. इस बाबत सदस्यों को बताया गया कि जेडबीटीटी रिव्यू में यह बात सामने है आई कि ट्रेनों की गति बढ़ाने के लिए कम संरक्षण वाले स्टापेज हटा दिए गए हैं. अतिरिक्त ठहराव अन्य मेल व एक्सप्रेस की गति को कम कर देगा और उनके समय पालन को भी प्रभावित करेगा. कुछ ट्रेनों के विषय में ऐसी व्यवस्था मान्य भी है लेकिन अब कई ऐसे स्टेशन हैं जहां एक भी एक्सप्रेस ट्रेन नहीं रुक रही. भले ही इससे हजारों यात्रियों को परेशानी ही क्यों न झेलनी पड़े. इस नजरिये से साफ है कि रेलवे पूरी तरह से कॉर्पोरेट कल्चर पर काम कर रही है जहां छोटे शहरों के यात्रियों की जरूरत से ज्यादा वह अपनी कमाई को प्राथमिकता दे रही है.
Nagpur Edition
06-november-2022 Page No. 3 epaper.enavabharat.com
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