Part One of Part Three
ट्रेन अठारह की पहली यात्रा--
बहु चर्चित ट्रेन18 में सफ़र का इंतज़ार आखिर 21अप्रैल को पूरा हुआ , इस यात्रा के लिए मेरा इस ट्रैन की शुरुआत से ही प्रयास कर रहा था किंतु हर बार कोई न कोई वजह से मुझे अपनी यात्रा तिथि आगे बढ़ाने को मज़बूर होना पड़ा था , ख़ैर काफ़ी कोशिशों के बाद आखिर 21अप्रैल को यह यात्रा होना तय हो पाया , तय कार्यक्रम के मुताबिक मैने लखनऊ से दिल्ली को यात्रा 17 अप्रैल को गोरखपुर हमसफ़र द्वारा...
more... तय की तथा वापसी ट्रेन18 से , किन्तु इस यात्रा की तिथि तय होने तक 12अप्रैल हो चुका था और उस वक़्त ट्रेन18 में केवल 67सीट बची हुई थी तथा ऐसे स्तिथी में खिड़की वाली सीट मिलने की संभावनाएं काफी ज्यादा कम थी , जिसको ध्यान रखते हुए मैंने एक जुआ खेलने का निर्णय लिया जिसके मुताबिक मैंने इस ट्रैन को वेटलिस्ट में जाने दिया तथा जब वेटलिस्ट क्रमांक 32 हो गया उस वक़्त टिकट का आरक्षण किया , खैर इस सब आधी अधूरी तैयारियो के साथ मैं दिल्ली रवाना हो गया , ट्रेन18 के टिकट बुक होने के साथ ही वेटलिस्ट घटने और खिड़की की सीट मिलने की उत्सुकता भी साथ जुड़ी रही
सफर का दिन -:
अखित सफर का दिन आ ही गया ,टिकट जो कि 32वेटलिस्ट था वह 19अप्रैल को ही कन्फर्म हो गया था किंतु सीट की जानकारी केवल चार्ट बनने पर ही मालूम हो सकती थी जिसका काफी उत्सुकता से इंतज़ार था , 20 की रात को मैंने रात्रि विश्राम के लिए नई दिल्ली रेलवे स्टेशन का डॉरमेट्री लिया हुआ था जो कि ठीक प्लेटफार्म 16 पर था , मुझे केवल ऊपर से नीचे ही आना था ट्रेन लेने के लिए , खैर दिन में काफी व्यस्तता के कारण थकान के वजह से मैं रात 11 बजे डॉरमेट्री में पहुँच के आराम करते हुए सुबह 5 बजे का अलार्म सेट कर के सो गया , ट्रेन चार्टिंग के बाद कौन सीट मिली है इसकी तथा ट्रेन18 में सफर की उत्सुकता के कारण मेरी नींद तय समय से पहले ही खुल गई तथा मैं 4:45 पर ही उठ गया और अलार्म को बजने से पहले ही बंद कर दिया और उसके बाद बेहद उत्सुकता तथा घबराते हुए अपना फ़ोन उठाया जिसपे सीट के बारे में जानकारी SMS द्वारा आ चुकी थी , मैं फ़ोन उठा के देख तो उसके C10,78 सीट नंबर लिखा हुआ था , मैंने काफी ढूढ़ा की ये कौन सी सीट होती है किंतु इंटरनेट पर ट्रेन18 के सीट लेआउट की पुख्ता कोई जानकारी प्रप्त नही हुए लेकिन मेरे खुद के अंदाजे के हिसाब से यह खिड़की सीट थी, इसलिए मैं ख़ुश तो था किंतु सीट खिड़की की ही है यह सुनिश्चित केवल ट्रेन में चढ़ने के बाद ही मालूम हो सकता था , खैर उठने के बाद मैं तैयार हो कर करीब 5:15 तक डोरमेट्री छोड़ दिया और नीचे प्लेटफ़ॉर्म 16 पर आ गया ,
प्लेटफार्म खचा-खच भरा हुआ था जिसमे अधिकांश वह यात्री थे जिनकी ट्रेन पूर्वा एक्सप्रेस दुर्घटना के वजह से या तो लेट थी या रद्द कर दी गई थी , खैर में पहले से मन बना के आया था कि ट्रैन को प्लेटफॉर्म लगते हुए वीडियो निकलना है इसलिए मैं अपने हिसाब से सदरबाज़ार छोर पर अपने सामान के साथ वीडियो लेने को तैयार था , ऐसा सब करते 5:30 हो चुका था , मैं विडियो लेने के लिए तैयार था कि तभी मेरे दिमाग मे अचानक ख्याल आया कि अपनी लोकेशन को चेक कर लेता ही कि सही जगह हूं या नही और गूगल मैप खोलते ही मुझे झटका लगा कि मैं जिस जगह पर हूं वो सदरबाज़ार नही दरअसल तिलक ब्रिज का छोर है और मैं दिशा भ्रम का शिकार हो गया हूं , अब तक 5:37 के करीब हो चुके थे मैं इसके बाद अपना सामान ले कर दूसरे छोर जाने की कोशिश की किंतु अब देर हो चुकी थी , मैं आधे रास्ते ही था कि मुझे ट्रेन18 प्लेटफॉर्म के तरफ़ आते दिखी ,शुरुवात में ही ऐसा होने से थोड़ी निराश तो हुई किंतु फिर मैं अपनी सीट के तरफ बढ़ गया , काफी चलने के बाद मुझे अपना डब्बा मिला और वहां पहुच के मुझे तस्सली हुई कि मेरे द्वारा खेला गया जुआ सफल रहा और मैन कोच के सबसे पीछे वाली खिड़की सीट मिल गई जो कि काफ़ी बढ़िया थी किसी भी रैलफैंन के लिए , खैर मैं अपना सामान ऊपर की ओर रख कर ट्रेन के पीछे भगा ताकि ट्रेन के पिछले छोर की तस्वीर ले कर ही संतोष कर सकूं ,, खैर पीछे पहुँचने पर पहले ही काफी युवा तस्वीर निकालने में व्यस्त थे ,मैं भी उस भीड़ में घुस कर कुछ तस्वीरी निकल कर वापिस आ गया , अब करीब 5:55 हो चुके थे , मैं अपनी सीट पर पहुँचा तो मुझे भी वही देखने को मिला जिस से हर रैलफैंन को नफ़रत होती है , मेरी सीट पर एक 65-60वर्ष के दंपति बैठे हुए थे अगल बगल , तथा उनका 30-35 वर्षीय पुत्र वहां खड़ा हुआ था 78नंबर सीट के यात्री से सीटो की अदलाबदली की बात करने के लिए जो कि मैं था ताकि वो सीट बदल सके ,, खैर इन ट्रैनों में लोअर बर्थ वाली परिस्थिति रहती नही जिसके लिए मैं अपनी सीट का बलिदान किसी वृध्द को देने के लिए सोचता भी ,
खैर उनके पुत्र ने प्यार भरे लहज़े में मुझसे सीट बदलने का आग्रह किया और मैंने उनसे भी प्यार भरे लहज़े में अपनी सीट खाली करने के लिए स्पष्ट शब्दों में इंकार कर दिया , और माता जी को बगल वाले सीट पर आने का आग्रह किया , उनके पुत्र ने दूसरी साइड वाले युवक से भी वही बात की और उस युवक ने भी साफ इंकार कर दिया , ख़ैर उसके बाद उनका पुत्र अपनी नाकामयाबी से निराश हो कर नीचे उतर गया , अब तक सब अपनी सीट ले कर बैठ चुके थे तथा टाइम करीब 5:58 हो चला था ,,ट्रेन रवानगी को तैयार थी , गेट बंद होने का ऐलान लगतार हो रहा था , जिसमे बिना टिकट ,वैटलिस्ट और अपनी परिजनों को छोड़ने आये लोगो को ट्रैन से उतर जाने का आग्रह किया जा रहा था , खैर 5:59 पर गेट बंद कर दिए गए , ठीक 6:00 बजे ट्रेन ने रेंगना शुरू कर दिया ,
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