Part Two of Three
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अब तक सभी यात्री अपनी जगह ले चुके थे , ट्रेन तिलक ब्रिज पर करने के बाद रफ़्तार पकड़ना शुरू कर चुकी थी , ट्रेन के भीतर अभी न्यूज़ पेपर वितरण का कार्य प्रारंभ हो चुका था , सभी यात्रियों को एक हिंदी एवं एक अँग्रेजी अख़बार दिए जा रहे थे , अब ट्रेन आनंदविहार पार कर रही थी किंतु अभी भी ट्रैन अपनी रफ़्तार पड़कने में सफल नही हो पा रही थी , किन्हीं कारणों से चंद्र नगर से ग़ाज़ियाबाद रेल रूट के बीच ट्रेने धीमी रफ़्तार...
more... से गुजारी जा रही थी , ख़ैर ग़ाज़ियाबाद आते आते ट्रेन करीब 100 को रफ्तार पकड़ चुकी थी , यहां हमें 1लीटर की पानी बोतल दी गई , अब तक सुबह की चाय मिलने का कोई संकेत नही मिल सका था , ग़ाज़ियाबाद पार करते ही ट्रैन अपनी रफ़्तार पकड़ने लगी ट्रेन अब 130 की रफ़्तार पर भाग रही थी ,इस ट्रेन के यात्रियों में एक अलग ही उत्साह था , सब काफी ख़ुश नज़र आ रहे थे और ट्रेन की खूबियों को सराहा रहे थे , काफी लोग अपने मोबाइल कैमरे से अपनी सेल्फी और ट्रेन की तस्वीरें निकाल रहे थे , ख़ैर दादरी के पास कैटरिंग स्टाफ़ ने सुबह की चाय का वितरण शुरू किया , लगभग सुबह 6:50 पर कैटरिंग स्टाफ़ द्वारा एक ट्रे में दो बिस्कुट और एक कप में गरम पानी दिया साथ मे एक छोटी डंडी और पैकेट में बंद मसाला चाय का पैकेट भी दिया गया , मैंने वो पैकेट खोल के गरम पानी मे मिलाया और पहला घूट पीते ही लगा कि ये क्या है , दरअसल उस चाय का स्वाद ऐसा था कि मैं अपने दुश्मन को भी वो चाय ना पिलाऊँ , चाय के नाम पर बेस्वाद जलजीरा जैसा कोई प्रदार्थ दिया गया हो ऐसा महसूस हुआ ,काफी कोशिश के बाद भी उस चाय में कोई चाय जैसा टेस्ट नही आया ,खैर मैने फिर साथ दिए गए बिस्किट खा कर अपने मुँह का स्वाद ठीक किया , यह सब होते करीब 8:25 हो चुके थे , ट्रेन अपने पूरे रफ्तार में भाग रही थी कि तभी 2RPF जवान किसी को ढूंढते हुए गेट की तरफ गए , तभी गेट के तरफ से कुछ तेज़ आवाज़े आने लगी , जिज्ञासावश मैंने जब गेट का रुख़ किया तो आरपीएफ के जवान एक व्यक्ति से पूछताछ कर रहे थे ,कऱीब जाने पर मालूम हुआ कि वो व्यक्ति बिना किस टिकट के ट्रेन18 में यात्रा कर रहा था ,तथा पकड़े जाने पर उसने बताया कि उसने जो ऑनलाइन टिकट लिया था वो वेटलिस्ट में ही रह गया था , और वह ऐसे ही चढ़ गया , मौजूद आरपीएफ ने उसे काफ़ी फटकार लगाने के बाद दो रास्ते सुझाएँ की या तो वो कानपुर में खुद को जीआरपी के हवाले कर दे या 3480₹ का जुर्माना भुगतान करे जिसके बाद उसको ट्रेन के गेट पर रह कर यात्रा की अनुमति दी जायेगी , काफ़ी देर चले ड्रामे के बाद और उस व्यक्ति के यह कहने पर की उसके पास अभी पर्याप्त पैसे नही है जुर्माना भरने के लिए यह तय हुआ कि उस व्यक्ति का मोबाइल जीआरपी के पास रहेगा और वह ट्रेन के गेट के पास यात्रा करते हुए इलाहाबाद में अपने परचित से पैसे मंगवा के देगा जिसके बाद उसका मोबाइल उसको वापिस किया जायेगा , खैर यह सब होते ट्रेन अलीगढ़ पार कर चुकी थी , यात्री अभी तक सुबह के नाश्ते के इंतज़ार कर रहे थे, मैंने अभी यह ध्यान दिया कि चाय के लिए दिया हुआ ट्रे और बाकी समान अभी तक वैसे ही वहां मौजूद थे ,हटाये नही गए थे ,,खैर मुझे चाय में मिली निराश के बाद नाश्ते से ज्यादा उम्मीद नही थी , लगभग 7:40पर छोटा पैकेट दिया जाता है जिसमे एक टिसू , एक हैंडवाश जेल , एक चमच और साथ मे एक छोटा पैक टमाटर की चटनी दी जाती है , ये समान मिलने के बाद हम नाश्ते के इंतज़ार करने लगते है जो कि काफ़ी लंबा इंतजार था , कऱीब 8:05 पर नाश्ते के पैकेट देना शुरू किया जाता है , जो कि सबसे आखिर में बैठे मुझ तक आने में वक़्त 8:20 तक हो जाता है , खैर मैंने कैटरिंग स्टाफ से नॉनवेज के लिए डिमांड किया जो कि खत्म हो चुका था ,पर उन्होंने दूसरे डब्बे से ला कर मुझे दिया , डब्बे खोलने पर उसमे ऑमलेट एवं डोनट, क्रोइसैन, ब्रूसकेटा दिया गया , नाश्ते के लिए सामग्री तो काफी थी किंतु वो बेमेल थी , अगर सरल भाषा मे कहाँ जाए तो तीन तरह की ब्रेड परोसी गई थी जिसके साथ एक छोटा सा टमाटर केचअप दिया गया था , मैंने पानी के साथ किसी तरह इस नास्ते को भी समाप्त किया किंतु मेरे बगल बैठी माता जी इस बेमेल सुबह के नाश्ते को खाने में असमर्थ रही और लगभग पूरा समान दुबारा बंद कर के वापिस रख दिया , अब तक करीब 8:35 होने को थे , नाश्ते के बाद हमे पेय प्रदार्थ के लिए तीन विकल्प दिए गए जिसमे चाय/कॉफी या सेब का बंद पैकेट जूस का विकल्प था , सुबह के चाय के ख़राब अनुभव के बाद मैंने चाय या कॉफ़ी ना लेना ज्यादा बेहतर समझा और सेब का जूस लेना बेहतर समझा , जो कि ठंडा बिल्कुल नही था , इसलिये स्वाद उतना सही नही लगा , ख़ैर अब तक ट्रेन टूण्डला निकल चुकी थी ,, मैंने यह ग़ौर किया कि इस ट्रेन के यात्रियों में अजीब ही इच्छा है चलते रहने की ,मानो इनके पैर ने पहिये लगे हो ,,कोई इधर जा रहा कोई उधर , कोई गेट पर टहल रहा , मुझे शुरू में तो काफ़ी अजीब सा लग रहा था यह सब, तभी मेरे बगल वाली सीट पर बैठी माता जी भी उठ कर टहलने चली गई , उसके बाद मुझे ध्यान आया कि दोष यात्रियों में नही है ना उनके पैर में पहिये लगे है , दरअसल इसकी असली वजह इस ट्रैन की ठोस रबर वाली बिना पुश बैक कुर्सियां थी ,काफ़ी यात्रिओ की पीठ 2-3घंटे बाद ही जवाब देना शुरू कर चुकी थी , दरअसल इन सीटों में पुशबैक का सिस्टम तो था नही ऊपर से ये ठोस रबड़ के होने के वजह से मुलायम भी नही थी , जिसके वजह से लंबे समय तक इनपर बैठना तकलीफ़देह था , खैर ट्रेन जब इटावा से निकल चुकी थी तो मैं भी अपनी सीट से उठ गया , इस ट्रेन की यह बात मुझे काफी पसंद आई कि इस ट्रेन में गेट का एरिया काफ़ी बड़ा था , यह इतना बड़ा था कि करीब 15-20लोग आराम से एक साथ खड़े हो सके , खैर वहां पहले ही काफ़ी लोग अपनी थकान मिटा रहे थे जो सीटो से परेशान थे , मैन भी कुछ समय वहां बिताया
Pic 1. tomato Ketchup nd tissue , spoon , hand wash liquid in pack
Pic 2 . Morning Breakfast
Pic 3 Rpf with Without Ticket passnger
Pic 4 Without Ticket Passnger
Pic 5 . Near Kanpur
To be continue in Next Post ....