Story of Achhnera
मेरी कहानी, मेरी आपबीती (अछनेरा जं) देश के पूर्वोत्तर भाग को पश्चिम भाग से जोडने के लिए तत्कालीन अंग्रेज गवर्नल जनरल लार्ड डलहौजी ने आगरा से अहमदाबाद एवं सिलीगुड़ी से कानपुर तक रेल लाइन का सर्वे कराया। इसी सर्वे मे मेरे जन्म की नीवं पड़ी। अक्टूबर 1874 को आगरा से पहली रेल सेवा मुझको पास करते हुए बांदीकुई के लिए गयी थी। इस प्रकार एक स्टेशन के रूप मे मेरा जन्म 1874 में हुआ। यह भारत की तत्कालीन दूसरी मीटर गेज़ रेल सेवा थी। 1881 में आगरा एवं दिल्ली...
more... से अहमदाबाद तक की समस्त रेल लाइन को यातायात हेतु खोल दिया गया था एवं इसी बर्ष पूर्वोत्तर भारत को पश्चिम भारत से जोडने के लिए कासगंज होते हुए कानपुर तक रेल लाइन का निर्माण किया गया| इस प्रकार मैं 1881 में पूर्ण रूप से अस्तित्व में आ गया। उस समय पर मैं पूर्वोत्तर भारत को देश के महत्वपूर्ण पश्चिमी हिस्से से जोडने वाले मार्ग का सबसे महत्वपूर्ण स्टेशन हुआ करता था। मेरे ही यार्ड मे समस्त गाडिया अपने इंजन का रिवर्सल करती थीं व उपरोक्त ट्रैक पर चलने वालीं मालगाडियां आज भी इंजन का रिवर्सल करती हैं। बहुत अच्छा लगता था उस समय | 1900 के आसपास सिलीगुड़ी तक ट्रैक का निर्माण हो चुका था एवं इसी समय आगरा से अहमदाबाद, आगरा से सिलीगुड़ी
वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों
इसी समय आगरा से अहमदाबाद, आगरा से सिलीगुड़ी वैशाली एक्सप्रेस को शुरू किया गया था। उपरोक्त दोनों ही रेल गाडियां किसी समय में आगरा के रेल परिवहन का
महत्वपूर्ण अंग हुआ करती थीं एवं मेरे यार्ड में दोनों ही रेल गाड़ियों का ठहराव था। पूर्वोत्तर रेलवे के कासगंज, बरेली खंड से आने वाले बहुत से यात्री अहमदाबाद को जाने
वाली/से आने वाली सेवन अप व एट डाउन (तत्कालीन डाक गाड़ी) को पकड़ने के लिए मेरा ही प्रयोग करते थे एवं उपरोक्त गाड़ी से प्राप्त यात्री यातायात राजस्व के साथ ही पार्सल एवं मॉल यातायात राजस्व से मेरी तत्कालीन जयपुर मंडल मे एक अलग ही पहचान थी। मेरी महत्वपूर्णता को बताने वाला बोर्ड आज भी मेरे सीने के प्लेटफोर्म एक के आगरा छोर पर अवशेष के रूप में खड़ा है जिस पर कि किसी समय लिखा रहता था (यहाँ से पूर्वोत्तर रेलवे के ---,- • स्थानों पर जाने के लिए गाडियां बदलिए). जैसा कि अक्सर सभी के साथ होता है सभी का बुरा दिन भी आता है। शायद ही कोई ऐसा हो जिसने इस जमाने में दुर्दिन न देखें हों। ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। 1992 में भारत सरकार द्वारा आमान परिवर्तन परियोजनाओं की शुरुआत की गयी एवं उपरोक्त परियोजनाओं के तहत पूरे भारत के रेलवे गेजों को अगले कुछ बर्षों (या कहें दशकों) में एक सा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। योजना के प्रथम चरण में 1992 में दिल्ली-अहमदाबाद-जोधपुर वाया जयपुर को ब्राड गेज बनाने का निश्चय किया गया। 1994 में मेरी मेन लाइन आगरा-बांदीकुई को भी ब्राड गेज में बदलने का निश्चय किया गया। में बहुत ही खुश था। में अपने आप को एक बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखने लगा। मेरे सीने से होते हुए गाडियां पकडने वाले यात्री भी बहुत खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने
खुश थे। हालांकि पिछले १२० बर्षों से चल रही मीटर गेज से बिछडने का दुःख तो हो रहा था किन्तु नए ज़माने के साथ चलने की खुशी भी थी। इसी गम खुशी के बीच 21 मई 1994 को राजस्थान की और जाने वाली समस्त एक्सप्रेस गाड़ियों को मेरे यार्ड मे से गुजरना ही बंद कर दिया गया। यही नहीं मेरी पहचान 22 लाईनों वाले मेरे यार्ड को भी उखाड़ दिया गया। मेरे लोकोशेड को भी बंद कर दिया गया। रह गया केवल अवशेष । इस आशा में कि कल को जब ब्राड गेज आएगी तो मुझे मेरी पुरानी पहचान, पुराना रूतबा बापस मिल जायेगा। इस बीच मेरे नीति नियामक भी बदल गए। मेरा जोनल कार्यालय मुंबई से चलकर हो गया इलाहबाद | मेरा मंडल कार्यालय भी जयपुर से बदलकर हो गया आगरा | नीति नियामकों से दूरी कम हुई तो सोचा था कि चलो अच्छा है अपनी बात पहुँचाने हेतु ज्यादा दूरी तय नहीं करनी होगी। सपने देखना अच्छी बात है और उससे भी अच्छी बात है उन सपनों को पूरा करना। देर से ही सही लेकिन मेरा सपना पूरा हुआ और 2 जुलाई 2005 को मेरे सीने से एक बार फिर रेलगाडियां दौडने लगीं। पूरी एक दो नहीं बल्कि 8 यात्री रेलगाडियां मेरे ऊपर होते हुए अपने गंतव्य स्थानों की और आने जाने लगीं। इन गाड़ियों में, मैं कुछ ढूंड रहा था। इस समय मेरी मथुरा ब्रांच लाइन मीटर गेज ही थी किन्तु आगरा जयपुर मेन लाइन पर मैं अपनी पुरानी साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस को ढूंड रहा था। दिन पर दिन, सप्ताह, महीनों और फिर सालों बीतते चले गए परन्तु इस बीच मुझे मेरी जन्म की साथी आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस कहीं नहीं दिखी। मेरी खुशी काफूर हो चुकी थी। मैं बड़े स्टेशन में बदलने का सपना देखकर काफी कुछ खो चुका था। मेरे लोकोशेड को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन
कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया
बंद कर दिया गया था। मेरे यार्ड को भी एक रोडवे स्टेशन कि भांति बना दिया गया था। इस सब को तो मैं सह गया किन्तु जन्म की दोस्त आगरा अहमदाबाद एक्सप्रेस की जुदाई मुझसे व पूरे ट्रैक से बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने अपने ऊपर होकर जाने वाले कुछ प्रबुद्धजनों से अपनी
पीड़ा व्यक्त की व उनसे मामले को ऊपर तक ले जाने का अनुरोध किया। मेरी मांग व याचना रंग लायी जब फरवरी 2010 को संसद मे रेल बजट प्रस्तुत करते हुए तत्कालीन रेल मंत्री महोदया ने मेरे मार्ग पर मेरी पुरानी साथी को फिर से शुरू करने की घोसणा की। इसी बीच मथुरा की और जाने वाली मेरी ब्रांच लाइन को ब्राड गेज मे बदल दिया गया और मैं सिलीगुड़ी एक्सप्रेस से पुनः मिलने के सपने देखने लगा। लगता था कि पुराना रूतबा तो शायद ही बापस आये परन्तु देर से ही सही पुराने बचपन के दोस्त तो मिल ही जायेंगे। ऐसा सोचते सोचते आया 01 जुलाई 2010| भारतीय रेलवे द्वारा नया टाइम टेबल जारी किया गया और मेरी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस को भी टाइम टेबल मे स्थान दिया गया। मैं पड़ना लिखना तो नहीं
जानता हूँ लेकिन अपने ऊपर होकर जाने वाले मुसाफिरों की बातों से मुझे पता चला कि मेरे दोस्त को तो मेरे यहाँ ठहराव ही नही दिया गया है। वहीं कुछ मुसाफिरों की बातों से लगता था की मेरे दोस्त का मेरे यहाँ ठहराव है। कुल मिलाकर मैं बहुत ही अनिश्चय की स्थिति में था और
मैंने उस दिन का इंतज़ार करना ही उचित समझा जिस दिन कि मेरी दोस्त ट्रैक पर दौड़े। इस प्रकार इंतजार करते करते आया फरवरी 2011 का दूसरा सप्ताह और दिन था संभवतः 11 फरवरी। यह दिन मेरे लिए दोहरी खुशी लेकर आने वाला था क्यों कि मैं अपनी दोस्त अहमदाबाद एक्सप्रेस से लगभग 17 बर्षों के लंबे इंतजार के बाद मिलने वाला था वहीं मेरी ब्रांच लाइन मथुरा की और भी गाडियां शुरू हो रही थीं। मेरे साथ साथ मुसाफिर भी